छत्तीसगढ़ म लोक कथा के अनेक रूप देखे ल मिलथे। जेमा प्रेम प्रधान, विरह के वेदना म फिजे लोक कथा, आध्यात्मिक लोक कथा, वीर रस के लोक कथा एकरे संगे संग जनजातीय आधार म घलो कथा के प्रचलन हाबे। अंचल के प्रतिनिधित्व करत ये छत्तीसगढ़ी लोककथा मन आज भी सियान बबा के मुंह ले सुने ल मिलथे। कतकोन लोक कथा ह तो गाथा गायन के रूप म देस विदेस म अपन सोर बगरावथे।
लोक कथा ‘दसमत कइना’ घलो अइसने प्रचलित लोक कथा आय जेला गाथा के रूप में घलो बेरा-बेरा म कलाकार के मुंह ले सुने ल मिलथे। ये कथा ह जादातर देवार कलाकार मन ले सुने ल मिलथे। दसमत कइना के कथा ह छत्तीसगढ़ के खालहे राज कोति जादा सुने ल मिलथे। दसमत कइना किस्सा ह नारी के जीवन ल चित्रित करथे। ये कथा ह भोजनगर के राजा के घर ले सुरू होथे। राजा भोज के सात बेटी रिथे। सातों ह जवान अउ सुन्दर रिहीस। राजा भोज के सातों बेटी मन बिहाव के लाइक होगे रिहीस। सात बिहिनी म दसमत कइना ह सबले जादा सुन्दर अउ चंचल रिहीस। चाराें मुड़ा ओकर रूप के चर्चा होय लगे।
राजा भोज ह एक दिन अपना सातों बेटी ल बला के एक ठन सवाल करिस। राज किथे- तुमन काकर करम के खाथंव। राजा के छै झन बेटी मन किथे पिता जी हम तो तोर करम के खाथन। ओरी ओर छियो झन मन ओसने काहत गिन जब दसमत कइना के पारी अइस त दसमत किथे- मैं अपन करम के खाथवं। अपन करम के पीथवं। अतका ल सुन के राजा भोज ह गुसियागे। ओकर स्वयं के औलाद ह ओकर आगू म कि दिस त रिस तो लागबे करही। राजा ह उही दिन ले परन करिस कि ओकर करम के परछो लेना हे। राजा अपन सैनिक मन ल बलाके किथे। दसमत कइना बर अइसे वर के तलास करव जेन ह निच्चट गरीब रहे। मुसकिल ले एक बखत के खाना नसीब होय अइसना वर तलास करव। मैं ओकरे संग दसमत के बिहाव करहूं। राजा भोज के सैनिक मन राज भर म किंजर-किंजर के गरीब वर के तलास म लगगे।
सैनिक मन पूरा राज ल खोज भुतइस तब सुदन ओडिया ल पइस। करिया कुरूप सुदन ल धर के राजा भोज ह जबरन दसमत कइना संग ओकर बिहाव करा दिस। दसमत घलो नियति मान के ओकर संग कलेचुप बिहाव कर लिस। सुदन मन दु भाई रिहीस। दोनों भाई महाजन बर जोगनी खोजे के काम करे। कोनो दिन जोगनी मिलय त उहू मन ल खाना नसीब होवय नइ मिले तेन नि तो लांघने जान। बर बिहाव करा के राजा ह अपन बेटी के करम के परछो ले खातिर ओला अपन घर ले बिदा घलो कर दिस।
दसमत कइना ह अपन पति अउ देवर संग ससुरार आगे। जइसन तइसन दिन पन्द्राही कटिस तब एक दिन दसमत अपन पति ले पूछिस तुमन अइसे का काम करथव जेमा दिन भर हरर-हरर कमाय के पाछू बरोबर रोजी तको नइ पावव। तब सुदन किथे कि हमन महाजन बर जोगनी खोजथन। दिन भर पथरा कुचर-कुचर के जे दिन जोगनी पाथन उही दिन महाजन ह हमर बनी देथे। पथरा तोड़ई अउ जोगनी खोजई के बात ल सुन के दसमत कइना के मन म घुसघुस गिस। दसमत किथे मैं आज तक जोगनी नइ देखे हंव एका ठी धर के लातेव त महू देख लेतेवं। दूसर दिन दूनो भाई अपन-अपन बुता म गिस अउ संझा कुन घर आय के बेरा अपन धोती के कोर म एक ठी जोगनी धर के लानिस। जोगनी ल देख के दसमत कइना के होस उड़ागे। ओहा अपन पति ल किथे स्वामी एक जोगनी नो हे ऐतो हीरा आय। ऐ अनमोल हीरा ल तुमन कउड़ी के दाम म महाजन बर निकालत रेहेव। चलव तो महाजन के मेरा बताबो किके दसमत कइना ह महाजन घर गिस।दसमत ह महाजन करा जाके नंगत के भसेड़िस अउ ओ कमाय धन म हिस्सा ल मांगिस।
महाजन घलो माफी मांगिस अउ बिना लड़ई-झगरा के अपन कमई के आधा हिस्सा ल दोनों भाई ल दिस। महाजन ले मिले धन ले दसमत ह सुग्घर घर बनईस अउ अपन जिनगी के सुख साधन जुटइस। अब तो उंकर मेर राजा भोज ले भी जादा संपत्ति होगे रिहीस। दसमत अपन पति संग भोजनगर पहुंचिस अउ अपन पिता के आसिस लिस। दसमत कइना के बदले दिन देख के राजा के अभिमान टूटगे। राजा भोज किथे ते सिरतोन केहे बेटी सब अपन करम के खाथे।
दसमत कइना के ये किस्स ह कई रूप म नारी जीवन के यथार्थ ल बताय के प्रयास करे हे। राजपाठ म रेहे के बाद भी दसमत ह बेटी अउ पत्नी दोनों के धरम ल निभाय हे। अइसने छत्तीसगढ़ के लोक कथा मन अपन समय के संस्कृति अउ सभ्यता के छईंहा वर्तमान ल देखाथे।
जयंत साहू
डूण्डा सेजबहार रायपुर
अहिमन कैना : छत्तीसगढी लोक गाथा